कांवड़ यात्रा 2020: शिव उपासना, व्रत, ओउम नमः शिवाय और हर हर महादेव से मोक्ष होगा या पतन?

कांवड़ यात्रा 2020: शिव उपासना, व्रत, ओउम नमः शिवाय और हर हर महादेव से मोक्ष होगा या पतन?


Kanwar yatra 2020




भगवान.....! जिसको प्राप्त करने के हर धर्म , हर गुरु, हर पंथ Meditation ,तप, व्रत-उपासना, मूर्ति-पूजा करता और करवाता है।  फिर भी जिस सुख की प्राप्ति के लिए हम भगवान की भक्ति करते हैं आखिर वह सुख क्यों नहीं मिल पाता..?
क्या हमारी साधना सही नहीं है? या फिर जो जिनको हम भगवान मान रहे हैं वह पूर्ण परमात्मा नहीं है..?

तो आज हम सावन के पावन महीने या Sawan Ka Pahala Somvar के पूजा पाठ, कर्मकांड, Om Namah Shivay या हर हर महादेव Mantra के जाप से मोक्ष संभव है?
शास्त्रों के अनुसार पूर्ण परमात्मा कौन है?

मुख्य बिन्दु ( headline)


  1. शिव की पूजा कैसे प्रारंभ हुई।
  2. Om Namah Shivay या हर हर महादेव Mantra के जाप से मोक्ष संभव है?
  3. व्रत करना गीता अनुसार कैसा है?
  4. आन-उपासना व्यर्थ है
  5. शास्त्रों के अनुसार पूर्ण परमात्मा कौन है.?
  6. कैनसी भक्ति से मोक्ष होगा.?

 1.शिव की पूजा कैसे प्रारंभ हुई


शिव महापुराण विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27.30 :- पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ।(27) उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया।(28) 
तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिवने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया।(29) उसी दिन से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ।(30)

और माना जाता है कि सती ने भगवान शिव को हर जन्म में पाने का प्रण किया था, उन्होंने अपने पिता राजा दक्ष के घर योग शक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था। यह कथा सबको पता है कि सती ने अपने शरीर का त्याग किया था । अपने पिता के अपमान को न सह सकी बेटी को यह करना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने हिमालय राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया था। माता पार्वती ने सावन के महीने में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी ।

इस प्रकार शिवलिंग की पूजा प्रारंभ हुई , यह पूजा सब हिंदुओं में देखा देखी चल रही है।

2. Om Namah Shivay या हर हर महादेव Mantra के जाप से मोक्ष संभव है?


हिंदू धर्म गुरुद्वारा भ्रमित होकर भगत समाज Om Namah Shivay या हर हर महादेव Mantra का जाप करता है लेकिन हमारे पवित्र शास्त्रों में इन मंत्रों का कहीं पर भी वर्णन नहीं है यह मन मुखी साधना है।

जिसे गायत्री मंत्र कहते हो, वह यजुर्वेद के अध्याय 36 का मंत्र 3 है जिसके आगे '' अक्षर नहीं है। यदि अक्षर को इस वेद मंत्र के साथ जोड़ा जाता है तो परमात्मा का अपमान है क्योंकि ओम अक्षर तो ब्रह्म का जाप है। यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 में परम् अक्षर ब्रह्म की महिमा है। यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति पत्र तो लिख रहा है प्रधानमंत्री को और लिख रहा है सेवा में "मुख्यमंत्री जी" कर रहा है तो वह प्रधानमंत्री का अपमान कर रहा है। फिर बात रही मंत्र यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 को बार बार जाप करने की, यह क्रिया मोक्ष दायक नहीं है।
मन्त्र का मूल पाठ इस प्रकार है:-

भूर्भवः स्व: तत सवित वरेणीयम भृगो देवस्य धीमहि धीयो योनः प्रयोदयात ।

इन मंत्रों के पढ़ने पड़ते रहने से मोक्ष संभव नहीं है क्योंकि यह तो परमात्मा की महिमा का एक अंश है। हजारों वेद मंत्रों में से यजुर्वेद अध्याय 36 का मंत्र संख्या 3 केवल एक मंत्र है। यदि कोई चारों वेदों को भी पढ़ता रहे तो भी मोक्ष नहीं। मोक्ष होगा वेदों में वर्णित ज्ञान के अनुसार भक्ति क्रिया करने से।

3. व्रत करना गीता अनुसार कैसा है..?


" व्रत करना गीता अनुसार कैसा है ?? 
उत्तर:-  श्रीमद्भगवत् गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में मना किया है कि हे अर्जुन ! यह योग ( भक्ति ) न तो अधिक खाने वाले का और न ही बिल्कुल न खाने वाले का अर्थात् यह भक्ति न ही व्रत रखने वाले , न अधिक सोने वाले की तथा न अधिक जागने वाले की सफल होती है।
इस श्लोक में व्रत रखना पूर्ण रुप से मना है।



4. आन-उपासना करना व्यर्थ है |

सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में आन-उपासना निषेध बताया है। उपासना का अर्थ
है अपने ईष्ट देव के निकट जाना यानि ईष्ट को प्राप्त करने के लिए की जाने वाली तड़फ, दूसरे शब्दों में पूजा करना। 
आन-उपासना वह पूजा है जो शास्त्रों में वर्णित नहीं है।

मूर्ति-पूजा आन-उपासना है :-
इस विषय पर सूक्ष्मवेद में कबीर साहेब ने इस प्रकार स्पष्ट किया है :-

कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।तातें तो चक्की भली, पीस खाए संसार।।बेद पढ़ैं पर भेद ना जानें, बांचें पुराण अठारा।पत्थर की पूजा करें, भूले सिरजनहारा।।

शब्दार्थ :- किसी देव की पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो शास्त्राविरूद्ध है। जिससे कुछ लाभ नहीं होता। कबीर परमेश्वर ने कहा है कि यदि एक छोटे पत्थर (देव की प्रतिमा) के पूजने से परमात्मा प्राप्ति होती हो तो मैं तो पहाड़ की पूजा कर लूँ ताकि शीघ्र मोक्ष मिले। परंतु यह मूर्ति पूजा व्यर्थ है। इस (मूर्ति वाले पत्थर) से तो घर में रखी आटा पीसने वाली पत्थर की चक्की भी लाभदायक है जिससे कणक पीसकर आटा बनाकर सब भोजन बनाकर खा रहे हैं।

वेदों व पुराणों का यथार्थ ज्ञान न होने के कारण हिन्दू धर्म के धर्मगुरू पढ़ते हैं वेद, पुराण व गीता, परंतु पूजा पत्थर की करते तथा अनुयाईयों से करवाते हैं। इनको सृजनहार यानि परम अक्षर ब्रह्म का ज्ञान ही नहीं है। उसको न पूजकर अन्य देवी-देवताओं की पूजा तथा उन्हीं की काल्पनिक मूर्ति पत्थर की बनाकर पूजा का विधान लोकवेद (दंत कथा) के आधार से बनाकर यथार्थ परमात्मा को भूल गए हैं। उस परमेश्वर की भक्ति विधि का भी ज्ञान नहीं है।

5. शास्त्रो के अनुसार पूर्ण परमात्मा कौन है..?


जिन-जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा को प्राप्त किया उन्होंने बताया कि कुल का मालिक एक है। वह मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है। जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है। उसी ने नाना रूप बनाए हैं। परमेश्वर का वास्तविक नाम अपनी-अपनी भाषाओं में कविर्देव (वेदों में संस्कृत भाषा में) तथा हक्का कबीर (श्री गुरु ग्रन्थ साहेब में पृष्ठ नं. 721 पर क्षेत्राय भाषा में) तथा सत् कबीर (श्री धर्मदास जी की वाणी में क्षेत्राय भाषा में) तथा बन्दी छोड़ कबीर (सन्त गरीबदास जी के सद्ग्रन्थ में क्षेत्राय भाषा में) कबीरा, कबीरन् व खबीरा या खबीरन् ( कुरान शरीफ़ सूरत फुर्कानि नं. 25, आयत नं. 19, 21, 52, 58, 59 में क्षेत्राय अरबी भाषा में)। इसी पूर्ण परमात्मा के उपमात्मक नाम अनामी पुरुष, अगम पुरुष, अलख पुरुष, सतपुरुष, अकाल मूर्ति, शब्द स्वरूपी राम, पूर्ण ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं।


प्रमाण:-

कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा है।


1. यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 32 में लिखा है कि जो परम सुखदायी, पाप का नशा कर सकता है, जो बंधनो का शत्रु अर्थात बन्दी छोड़ है, वह "कविरसि" कबीर है। स्वयं प्रकाशित अर्थात तेजोमय शरीर वाला (ऋतधाम) सत्यलोक में निवास करता है।सब भगवानों का भगवान अर्थात सर्वशक्तिमान सम्राट यानि महाराजा है।

2. ऋज्ञवेद मण्डल न. 9 सूक्त 86 मन्त्र 26 में कहा है कि अपने निज लोक से गति करता हुआ आता है सशरीर पृथ्वी पर आता है, नेक आत्माओ को मिलता है।भक्तो के संकटो का नाश करता है। उसका नाम कविर्देव अर्थात कबीर परमेश्वर है।

(टिप्पणी :- यजुर्वेद अ. 36 मन्त्र 1 में यजु: का अर्थ यजुर्वेद किया है अतः कविर(कवि:) का अर्थ कविर्देव लिखना तर्कसंगत है।)

{ ऋज्ञवेद मण्डल न. 9 सूक्त 86 मन्त्र 27 में लिखा है कि परमात्मा द्युलोक(सतलोक) के तीसरे पृष्ठ पर विराजमान है। अर्थात परमात्मा एकदेशीय है और साकार है और सतलोक में विराजमान है।}


ऋज्ञवेदादि भाष्य भूमिका" पुस्तक के पृष्ठ 10-11 पर लिखा है कि ब्रह्म ने स्वासों से वेदो को उत्पन्न किया था।


परमात्मा सशरीर है।

प्रमाण 1 :- पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मन्त्र 15 "अग्ने: तनूर् असि" यानि परमेश्वर सशरीर है।

प्रमाण 2 :- यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 1 में लिखा है "अग्ने: तनूर् असि विष्णवे त्वा सोमस्य तनूर् असि" इस मंत्र में दो बार गवाही दे रहा है कि सर्वव्यापक, सर्वपालक कर्ता सतपुरुष सशरीर है।

प्रमाण 3 :- यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 32 में लिखा है कि "कविरंघारि: असि, बम्भारि: असि स्वज्योति ऋतधामा असि) कबीर परमेश्वर पापों का शत्रु अर्थात पाप नष्ट करता है, वह बंधनो का शत्रु अर्थात बंधनो से छुड़वाता है। वह स्वप्रकाशित शरीर वाला सतलोक में रहता है।

प्रमाण 4 :- यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 8 में लिखा है कि (कविर् मनिषी) जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियो को चाह है, वह कविर् अर्थात कबीर है। उसका शरीर बिना नाड़ी (अस्नाविरम) का है, (शुक्रम) वीर्य से बनी पांच तत्व की भौतिक(अकायम्) काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक में विराजमान है, उस परमेश्वर का तेजपुंज का (स्वर्ज्योति) स्वयं प्रकाशित शरीर है जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है जो सब ब्रम्हांडो की रचना करने वाला (व्यदधाता) सर्व ब्रम्हांडो का रचनहार (स्वयम्भू:) स्वयं प्रकट होने वाला (यथा तथ्य अर्थान्) वास्तव में (शाश्वत) अविनाशी है।

6. कौनसी भक्ति से मोक्ष होगा..?


वर्तमान समय मे जो भी पूजा साधना की जा रही है वह बिल्कुल भी शास्त्र अनुकूल भक्ति विधि नहीं है। शास्त्रों के अनुसार भक्ति विधि केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते है ।

प्रमाण है गीता जी का अध्याय 15 के श्लोक 1 से 4 व 16 , 17 में ।

आध्यत्मिक ज्ञान ही मोक्ष का सार है । यह ज्ञान वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पास है उनका ज्ञान सुनें और समझें । सभी साधन उपलब्ध है और पढ़े लिखे भक्त वेदों पुराणों और अन्य शास्त्रों से मिलान भी कर सकते हैं । यह मानव जन्म बार बार नहीं मिलता है अतः लख चौरासी से बाहर जाने के लिए मोक्ष मार्ग का चयन ध्यान पूर्वक करें ।

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2 Comments

  1. पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब है जिनकी भक्ति करने से मोक्ष प्राप्त होगी ।

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