व्रत करना चाहिए या नहीं

  • " व्रत करना गीता अनुसार कैसा है ?? 


                            शास्त्र विरूद्ध भक्ति..?

उत्तर:-  श्रीमद्भगवत् गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में मना किया है कि हे अर्जुन ! यह योग ( भक्ति ) न तो अधिक खाने वाले का और न ही बिल्कुल न खाने वाले का अर्थात् यह भक्ति न ही व्रत रखने वाले , न अधिक सोने वाले की तथा न अधिक जागने वाले की सफल होती है।
इस श्लोक में व्रत रखना पूर्ण रुप से मना है। 


 "श्राद्ध - पिण्डदान गीता अनुसार कैसा है ? " 

आप श्राद्ध व पिण्डदान करते हो । गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में स्पष्ट किया है कि भूत पूजने वाले भूतों को प्राप्त होंगे। श्राद्ध करना, पिण्डदान करना यह भूत पूजा है, यह व्यर्थ साधना है। 
"श्राद्ध - पिण्डदान के प्रति रूची ऋषि का वेदमत " मार्कण्डेय पुराण में " रौच्य ऋषि के जन्म की कथा आती है। एक रुची ऋषि था। वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वेदों अनुसार साधना करता था। विवाह नहीं करवाया था । रुची ऋषि के पिता, दादा, परदादा तथा तीसरे दादा सब पितर ( भूत ) योनि में भूखे - प्यासे भटक रहे थे। एक दिन उन चारों ने रुची ऋषि को दर्शन दिए तथा कहा कि बेटा ! आपने विवाह क्यों नहीं किया ? विवाह करके हमारे श्राद्ध करना। रुची ऋषि ने कहा कि हे पितामहो..! वेद में इस श्राद्ध आदि कर्म को 'अविद्या' कहा है। मूखों का कार्य कहा है।
फिर आप मुझे इस कर्म
को करने को क्यों कह रहे हो..?
 पितरों ने कहा कि यह बात सत्य है कि  
श्राद्ध आदि कर्म को वेदों में अविद्या अर्थात मूर्खों का कार्य ही कहा है। इससे सिद्ध हुआ कि वेदों में तथा वेदों के ही संक्षिप्त रूप गीता में श्राद्ध- पिण्डोदक आदि भूत पूजा के कर्म को निषेध बताया है , नहीं करना चाहिए।
उन मूर्ख ऋषियों ने अपने पुत्र को भी श्राद्ध करने के लिए विवश किया।
उसने विवाह करवाया, उससे रौच्य ऋषि का जन्म हुआ, बेटा भी पाप का भागी बना लिया।

 जिसे गायत्री मंत्र कहते हो, वह यजुर्वेद के अध्याय 36 का मंत्र 3 है जिसके आगे 'ॐ'अक्षर नहीं है। यदि ॐ अक्षर को इस वेद मंत्र के साथ जोड़ा जाता है तो परमात्मा का अपमान है क्योंकि ओम अक्षर तो ब्रह्म का जाप है। यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 में परम् अक्षर ब्रह्म की महिमा है। यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति पत्र तो लिख रहा है प्रधानमंत्री को और लिख रहा है सेवा में "मुख्यमंत्री जी" कर रहा है तो वह प्रधानमंत्री का अपमान कर रहा है। फिर बात रही मंत्र यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 को बार बार जाप करने की, यह क्रिया मोक्ष दायक नहीं है।
मन्त्र का मूल पाठ इस प्रकार है👇🏻

भूर्भवः स्व: तत सवित वरेणीयम भृगो देवस्य धीमहि धीयो योनः प्रयोदयात ।


   


इन मंत्रों के पढ़ने पड़ते रहने से मोक्ष संभव नहीं है क्योंकि यह तो परमात्मा की महिमा का एक अंश है। हजारों वेद मंत्रों में से यजुर्वेद अध्याय 36 का मंत्र संख्या 3 केवल एक मंत्र है। यदि कोई चारों वेदों को भी पढ़ता रहे तो भी मोक्ष नहीं। मोक्ष होगा वेदों में वर्णित ज्ञान के अनुसार भक्ति क्रिया करने से।

प्रश्न:- पवित्र गीता में मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान कैसा है..?

उतर:- पवित्र गीता में केवल ब्रह्म स्तर की भक्ति विधि लिखी है। और मोक्ष के लिए परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करनी होगी।
गीता में पूर्ण विधि नहीं है केवल संकेत है। जैसे गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में कहा है कि :- "सच्चिदानंद घन ब्रह्म अर्थात परम् अक्षर ब्रह्म" की प्राप्ति के लिए "ओम, तत् , सत् " मंत्र का निर्देश है। इसके स्मरण की विधि तीन प्रकार से है। इस मंत्र में ॐ तो क्षर पुरुष अर्थात ब्रह्म का मंत्र तो स्पष्ट है। परंतु  "पर ब्रह्म" (अक्षर पुरुष) का मंत्र "तत्" है जो सांकेतिक है, यह मंत्र पूर्ण संत ही बताएगा।

'सत्" यह मंत्र पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) है जो सांकेतिक है। इसको भी वह तत्वदर्शी संत ही बताएगा।




                         कौन है तत्वदर्शी संत...?


तत्वदर्शी संत के पास ही पूर्ण मोक्ष का मार्ग होता है। जो ने वेदों में है, ना गीता में, ना पुराणों में या अन्य उपनिषदों में। तत्वज्ञान की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए गीता तथा वेद सहयोगी है। जो भक्ति विधि वेद-गीता में है,वही तत्वज्ञान में भी है।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज द्वारा पवित्र शास्त्रों में वर्णित सतभक्ति बता रहे हैं तो मानव समाज से प्रार्थना है कि संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताएंगे आध्यात्मिक ज्ञान को समझें और अपना कल्याण करवाएं।
अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पवित्र पुस्तकें ज्ञान गंगा, जीने की राह अवश्य पढ़ें।

साथ ही संत रामपाल जी महाराज जी के अनमोल सत्संग अवश्य देखे साधना टीवी पर रात्रि 7:30 बजे।

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1 Comments

  1. Ye itni achi information h , ab m b satsang dekhunga roj

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