बेरोजगारी, विकास में बाधा
वर्तमान समय मे आज देश मे बहुत सी समस्याएँ है।
जिनमे से बेरोजगारी भी है।
आज किसी भी देश के विकास में सबसे बढ़ा सहयोग रोजगार का है। और विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है बेरोजगारी।
भारत में भी बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है ।
विकासशील देशों के सामने आने वाली मुख्य समस्याओं में से एक बेरोजगारी है।
यह केवल देश के आर्थिक विकास में खड़ी प्रमुख बाधाओं में से ही एक नहीं बल्कि व्यक्तिगत और पूरे समाज पर भी एक साथ कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालती है।
बेरोजगारी के प्रमुख कारण व हानिया:-
बेरोजगारी का प्रमुख कारण हैं वर्तमान शिक्षा प्रणाली।
शिक्षा का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और प्रदर्शन संबंधी समस्याएं कुछ ऐसे कारक हैं जो बेरोजगारी का कारण बनती हैं।
आज देश के अधिकांश नवयुवक शारीरिक श्रम से बचने का प्रयास करता हैं।
नौकरी सीमित हैं और नौकरी पाने वालो की संख्या असीमित हैं।
आज हर छात्र शिक्षा समाप्त कर नौकरी प्राप्त करना चाहता हैं।
अधिकांश नवयुवक शारीरिक श्रम से बचने का प्रयास करता हैं।
बेरोजगार होने पर हम सरकार पर दायित्व होते हैं सरकार बेरोजगार युवाओं के ऊपर बहुत धन व्यय करती है जैसे गैहू को 18 रुपया में खरीद कर 1.5 रुपये में देती है । जिससे सरकार का बहुत नुकसान होता है।
बेरोजगारी के प्रकार:-
1. शिक्षित बेरोजगारी
शिक्षित बेरोजगारी उसे कहते है जब किसी के पास काम करने की योग्यता की शिक्षा होने के बाद भी रोजगार न मिले। मतलव शिक्षित लोगो को उनकी योग्यता के अनुरूप कोई काम न मिले।
2. सरचनात्मक बेरोजगारी:- सरचनात्मक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो अर्थव्यवस्था मे होने वाले संरचनात्मक बदलाव के कारण उत्पन्न होती है।
3. अल्प बेरोजगारी : अल्प बेरोजगारी वह स्थिति होती है जिसमै एक श्रमिक जितना समय काम कर सकता है उससे कम समय वह काम करता है।
4. मौसमी बेरोजगारी:-
भारतीय समाज में परंपरागत तरीके से कृषि करने वालो के लिए वर्ष मे 7 या 8 माह ही काम होता है इसी तरह कृषि से जुड़े उधोग के संचालन को हम देखे तो स्थित स्पष्ट हो जाती हैं जैसे-शक्कर मिल मे लगे श्रमिकों को गन्ना की उपलब्धता होने पर ही कार्य मिलता हैं।
सरकार के प्रयास:-
सन् 1919 ई. में अंतरराष्ट्रीय श्रमसम्मेलन के वाशिंगटन अधिवेशन ने बेरोजगारी अभिसमय (Unemployment convention) संबंधी एक प्रस्ताव स्वीकार किया था जिसमें कहा गया था कि केंद्रीय सत्ता के नियंत्रण में प्रत्येक देश में सरकारी काम दिलाऊ अभिकरण स्थापित किए जाए।
सन् 1931 ई. में भारत राजकीय श्रम के आयोग (Royal Commission on Labour) ने बेरोजगारी की समस्या पर विचार किया और निष्कर्ष रूप में कहा कि बेरोजगारी की समस्या विकट रूप धारण कर चुकी है। यद्यपि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय श्रमसंघ का "बेरोजगारी संबंधी" समझौता सन् 1921 ई. में स्वीकार कर लिया था परंतु इसके कार्यान्वयन में उसे दो दशक से भी अधिक का समय लग गया।
सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट में बेरोजगारी (बेरोजगारी) प्रांतीय विषय के रूप में ग्रहण की गई। परंतु द्वितीय महायुद्ध समाप्त होने के बाद युद्धरत तथा फैक्टरियों में काम करनेवाले कामगारों को फिर से काम पर लगाने की समस्या उठ खड़ी हुई। 1942 - 1944 में देश के विभिन्न भागों में काम दिलाऊ कार्यालय खोले गए परंतु काम दिलाऊ कार्यालयों की व्यवस्था के बारे में केंद्रीकरण तथा समन्वय का अनुभव किया गया। अत: एक पुनर्वास तथा नियोजन निदेशालय (Directorate of Resettlement and Employment) की स्थापना की गई है।
फिर भी बेरोजगारी को समाप्त नही किया गया।
बेरोजगारी कैसे दूर होगी..?
बेरोजगारी को खत्म करने लिये सरकार को चाहिए कि समय समय पर रोजगार के नये अवसर प्रदान करे।
और साथ मे युवाओं को भी चाहिए कि वह अपनी शिक्षा को लेके जागरूक हो।
युवाओ को सांसारिक गुरु के साथ साथ आध्यात्मिक गुरु की भी आवश्यकता है।
और वर्तमान समय वह आध्यात्मिक गुरु संत रामपाल जी महाराज है, जिनका आध्यात्मिक ज्ञान सुनने से इंसान को अपने अपने लक्ष्य का पता रहता है।
इंसान के अंदर अच्छे विचार आते है सभी बुराइयों से दूर रहता है।
अधिक जानकारी के लिये अवश्य पढ़ें पुस्तक "जीने की राह"
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