वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना कैसे हुई?
जिस समय दक्ष की बेटी यानि उमा ( शंकर जी की पत्नी ) ने श्री रामचन्द्र जी की बनवास में सीता रूप बनाकर परीक्षा ली थी। श्री शिव जी ऐसा न करने को कहकर घर से बाहर चले गए थे । सीता जी का अपहरण होने के पश्चात् श्रीराम जी अपनी पत्नी के वियोग में विलाप कर रहे थे तो उनको सामान्य मानव जानकर उमा जी ने शंकर भगवान की उस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि ये विष्णु जी ही पृथ्वी पर लीला कर रहे हैं । जब उमा जी सीता जी का रूप बनाकर श्री राम जी के पास गई तो वे बोले , हे दक्ष पुत्री माया..! भगवान शंकर को कहाँ छोड़ आई।
इस बात को श्री राम जी के मुख से सुनकर उमा जी लज्जित हई और अपने निवास पर आई। शंकर जी की आत्मा में प्रेरणा हई कि उमा ने परीक्षा ली। शंकर जी ने विश्वास के साथ कहा कि परीक्षा ले आई। उमा जी ने कुछ संकोच करके भय के साथ कहा कि परीक्षा नहीं ली अविनाशी। शंकर जी ने सती जी को हृदय से त्याग दिया था। पत्नी वाला कर्म भी बंद कर दिया। बोलना भी कम कर दिया तो सती जी अपने घर राजा दक्ष के पास चली गई। राजा दक्ष ने उसका आदर नहीं किया क्योंकि उसने शिव जी के साथ विवाह पिता की इच्छा के विरूद्ध किया था। राजा दक्ष ने हवन कर रखा था। हवन कुण्ड में छलांग लगाकर सती जी ने प्राणान्त कर दिया था । शंकर जी को पता चला तो अपने ससुराल आए। राजा दक्ष का सिर काटा , फिर उस पर बकरे का सिर लगाया।
भगवान शिव जी उसकी अस्थियों के कंकाल को मोहवश सती जी ( पार्वती जी ) जान कर दस हजार वर्ष तक कंधे पर लिए पागलों की तरह घूमते रहे। भगवान विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से सती जी के कंकाल को छिन्न - भिन्न कर दिया।
जहां धड़ गिरा वहाँ पर उसको जमीन में गाढ़ दिया गया। इस धार्मिक घटना की याद बनाए रखने के लिए उसके ऊपर एक मन्दिर जैसी यादगार बना दी कि कहीं आने वाले समय में कोई यह न कह दे कि पुराण में गलत लिखा है । उस मन्दिर में एक स्त्री का चित्र रख दिया उसे वैष्णो देवी कहने लगे। उसकी देख - रेख व श्रद्धालु दर्शकों को उस स्थान की कहानी बताने के लिए एक नेक व्यक्ति नियुक्त किया गया। उसको अन्य धार्मिक व्यक्ति कुछ वेतन देते थे। बाद में उसके वंशजों ने उस पर भेंट ( दान ) लेना प्रारम्भ कर दिया तथा कहने लगे कि एक व्यक्ति का व्यापार ठप्प हो गया था , माता के सौ रूपये संकल्प किए , एक नारियल चढ़ाया। वह बहुत धनवान हो गया। एक निःसन्तान दम्पति था, उसने माता के दो सौ रूपए, एक साड़ी, एक सोने का गले का हार चढ़ाने का संकल्प किया। उसको पुत्र प्राप्त हो गया।
इस प्रकार भोली आत्माएं इन दन्त कथाओं पर आधारित होकर अपनी पवित्र गीता जी तथा पवित्र वेदों को भूल गए, जिसमें वह सर्व साधनाएं शास्त्र विधि रहित लिखी हैं। जिसके कारण न कोई सुख होता है , न कोई कार्य सिद्ध होता है, न ही परम गति अर्थात् मुक्ति होती है।
( प्रमाण👇🏻
पवित्र गीता अध्याय 16 मंत्र 23 - 24 )
इसी प्रकार जहां देवी की आँखे गिरी वहाँ नैना देवी का मन्दिर व जहां जिव्हा गिरी वहाँ श्री ज्वाला जी के मन्दिर तथा जहां धड़ गिरा वहाँ वैष्णो देवी के मन्दिर की स्थापना हुई।
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1 Comments
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