गुरु का महत्व | जीवन मे गुरु का होना क्यों जरूरी है? | Importance of True Guru (Spiritual Teacher) | Mysteries Blog
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार जीव का जन्म और मरण के बंधन से छूट जाना ही मोक्ष है। भारतीय दर्शनों में कहा गया है कि जीव अज्ञान के कारण ही बार बार जन्म लेता और मरता है । इस जन्ममरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है। जब मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है, तब फिर उसे इस संसार में आकर जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती । और मोक्ष प्राप्ति के लिए गुरु बनाना बहुत जरूरी है। गुरु ही हमारा अज्ञान दूर करके हमें मोक्ष मार्ग दिखाता है
प्रश्न :- क्या गुरू के बिना भक्ति नहीं कर सकते?
उत्तर :- भक्ति कर सकते हैं, परन्तु व्यर्थ प्रयत्न रहेगा।
प्रश्न :- कारण बताऐं?
उत्तर :- परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है :-
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरू कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।।
कबीर, राम कृष्ण बड़े तिन्हूं पुर राजा।
तिन गुरू बन्द कीन्ह निज काजा।।
भावार्थ :- गुरू धारण किए बिना यदि नाम जाप की माला फिराते हैं और दान देते हैं, वे दोनों व्यर्थ हैं। यदि आप जी को संदेह हो तो अपने वेदों तथापु राणों में प्रमाण देखें।
श्रीमद् भगवत गीता चारों वेदों का सारांश है। गीता अध्याय 2 श्लोक 7 मेंअर्जुन ने कहा कि हे श्री कृष्ण! मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने अर्जुन से कहा कि तू मेरा भक्त है। पुराणों में प्रमाण है कि श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी से नाम दीक्षा ली थी और अपने घर व राज-काज में गुरू वशिष्ठ जी की आज्ञा लेकर कार्य करते थे। श्री कृष्ण जी ने ऋषि संदीपनि जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया तथा श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू श्री दुर्वासा ऋषि जी थे।
कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप जी श्री राम तथा श्रीकृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात् समर्थ नहीं मानते हो। वे तीन लोक के मालिक थे, उन्होंने भी गुरू बनाकर अपनी भक्ति की, मानव जीवन सार्थक किया।
इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति यदि गुरू के बिना भक्ति करता है तो कितना सही है? अर्थात् व्यर्थ है।
◆गुरू के बिना देखा-देखी कही-सुनी भक्ति को लोकवेद के अनुसार भक्ति कहते हैं। लोकवेद का अर्थ है, किसी क्षेत्रा में प्रचलित भक्ति का ज्ञान जो तत्वज्ञान के विपरीत होता है।
अर्थात व्यर्थ साधना है कोई लाभ नहीं।
क्या गुरु बिन मोक्ष नहीं हो सकता?
कबीर परमात्मा ने अपनी वाणी में कहा है:-
गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोक्ष।गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।
कबीर परमात्मा कहते हैं – हे सांसरिक प्राणियों! बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों मे जकड़ा रहता है जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले गुरू हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ। गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे।
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23- 24 में कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं, उनको न तो सुख होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और न ही गति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है अर्थात् व्यर्थ साधना है।
फिर गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि अर्जुन! इससे तेरे लिए कृर्तव्य और अकृर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं।
वर्तमान में जो हिंदू समाज साधना कर रहा है वह सब गीता वेदों में वर्णित न होने से शास्त्र विरुद्ध साधना हुई जो व्यर्थ है।
कबीर, गुरू बिन काहु न पाया ज्ञाना,ज्यों थोथा भुस छडे़ मूढ़ किसाना।
कबीर, गुरू बिन वेद पढै़ जो प्राणी,समझै न सार रहे अज्ञानी।।
इसलिए गुरू जी से वेद शास्त्रों का ज्ञान पढ़ना चाहिए जिससे सत्य भक्ति
की शास्त्रानुकूल साधना करके मानव जीवन धन्य हो जाए। मोक्ष की प्राप्ति होगी और जन्म मरण से छुटकारा मिल जाएगा फिर वापस 84 लाख योनियों में नहीं आना पड़ेगा।
वर्तमान में वह सच्चे गुरु संत रामपाल जी महाराज है जिनके पास शास्त्रों में वर्णित सही सद्भक्ति है जिससे मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है तो आप भी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर अपना जीवन धन्य बनाएं।
2 Comments
👌
ReplyDeleteNice blog post, amazingly written
ReplyDeleteyou come and support me, we will make this earth heaven