Janmashtami 2020: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जानिए जन्माष्टमी का व्रत करना श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार सही है या गलत? | Mystries Revealed

Janmashtami 2020: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जानिए जन्माष्टमी का व्रत करना श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार सही है या गलत? | Mystries Revealed


जन्माष्टमी ,इस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं जन्माष्टमी कब है, इसका महत्व क्या है। व्रत करने से लाभ है या नहीं। और कौन है वासुदेव जो पूर्ण मोक्षदायक है।

Table of Contents

1. इस साल कब है जन्माष्टमी।
2. लोकवेद। 
3. विष्णु जी को क्यों लेना पड़ा राम अवतार?
4. व्रत करना गीता अनुसार कैसा है।
5. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म (काल) है ना कि श्री कृष्ण।
6. पूर्ण वासुदेव कौन है।

1. इस साल कब है जन्माष्टमी


भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस यानी कृष्ण जन्माष्टमी हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए इसे कृष्ण जन्माष्टमी या केवल जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ 11 अगस्त को सुबह 09 बजकर 06 मिनट से हो रहा है, जो 12 अगस्त को दिन में 11 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। हर बार की तरह इस बार भी जन्माष्टमी दो दिन मनाई जा रही है। 11 और 12 अगस्त दोनों दिन जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है। लेकिन 12 अगस्त को जन्माष्टमी मानना श्रेष्ठ है। मथुरा और द्वारिका में 12 अगस्त को जन्मोत्सव मनाया जाएगा।

2. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बारे में लोकवेद


हिंदू त्यौहार में लोकवेद की अहम भूमिका रही है। लोक वेद के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी में स्त्री और पुरुष दोनों रात्रि 12:00 बजे तक व्रत रखते हैं। इसी दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का भी आयोजन किया जाता है।

स्कंद पुराण के अनुसार जो व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत नहीं करता वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। भविष्य पुराण का मत है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता वह राक्षस होता है। एक मान्यता यह भी है कि आधी रात के समय रोहिणी में जब श्री कृष्ण जन्माष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का पूजन-अर्चन करने से तीनों जन्मों के पापों का नाश होता है लेकिन जब श्रीकृष्ण खुद अपने पाप कर्म को नहीं काट पाए तो भक्तों के कैसे काटेंगे। (पुराणों में लिखित मत ब्रह्मा जी का है ना की पूर्णब्रह्म परमात्मा का)

जिस समय गीता जी का ज्ञान बोला जा रहा था उससे पहले न 18 पुराण थे, न 11 उपनिषद और न ही छह शास्त्र थे। उस समय केवल पवित्र चार वेद ही शास्त्र रूप में प्रमाणित थे। और उन्हीं चारों वेदों का सारांश पवित्र श्रीमद भगवत गीता जी में वर्णित है।


श्री कृष्ण ने 16000 ब्याह रचाए, गोपियों के संग रास रचाया, माखन चुराया, गोपियों के वस्त्र चुराए, अपने ही सगी मम्मी राधा संग संबंध बनाए फिर भी हम उन पर ही रीझते हुए नहीं थकते।
क्या ऐसा संबंध भगवान की श्रेणी में आने वाले ईश को शोभा देता है...?? उनकी पूजा करने वाला कोई व्यक्ति यदि ऐसा कर्म संबंध करें तो समाज में क्या वह स्वीकार्य होगा ?

3. विष्णु जी को क्यों लेना पड़ा राम अवतार


नारद जी की श्राप वश विष्णु जी को त्रेतायुग में राम बनकर जन्म लेना पड़ा और विवाह होते ही बनवास गमन फिर रावण द्वारा सीता हरण, सीता को रावण की कैद से वापस लाना और धोबी के कहने पर सीता का त्याग कर देना। राम जी का पूरा जीवन स्त्री वियोग में बीता। अंत में राम जी ने सरयू नदी में जल समाधि ले ली।

सीता को रावण के चंगुल से बचाने के लिए राम को हनुमान जी की वानर सेना की सहायता लेनी पड़ी भगवान होते हुए भी वह अकेले सीता जी को वापस लाने में समर्थ नहीं थे। रामजी भयभीत थे इसलिए उन्होंने धोखे से सुग्रीव के भाई बाली का पेड़ की ओट लेकर वध किया था। (क्योंकि बाली बहुत शक्तिशाली था उसके सामने जो भी योद्धा युद्ध के लिए आता था तो उसका आधा बल बाली के शरीर में चला जाता था।) बाली के अंतिम समय में राम ने जब पूछा कि आप ने धोखे से मेरी हत्या क्यों की ? तब राम ने कहा था कि जब मैं द्वापर युग में कृष्ण रुप में आऊंगा तो तुम्हारा बदला चुकाऊंगा।

"बदला कहीं न जात है, तीनो लोक के माही"। 

विष्णु जी जब राम रूप में इस लोक में आए थे तो पूरा जीवन कष्टमय रहा। भगवान होकर भी अपने प्रारब्ध के कर्म को नहीं काट सके। सीता लक्ष्मी जी का अवतार थी और विवाह होते ही बनवास मिला। रावण उठा कर ले गया 12 वर्ष तक ने ठीक से आहार मिला और रावण की वासना से खुद को बचाती रही।

इस लोक में तो स्वर्ग से आए हुए भगवान भी सुरक्षित नहीं है। जो भगवान अवतार रूप में आने पर भी अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकते वह अपने साधक (भगत) की रक्षा कैसे कर सकते हैं???

द्वापर युग में लिया कृष्ण अवतार


 द्वापर युग में कृष्ण जी के 56 करोड़ की आबादी वाले यादव कुल का आपस में लड़ने से नाश हो गया श्री कृष्ण जी लाख जतन कर के भी नहीं रोक पाए थे। एक दिन श्री कृष्ण जंगल के एक वृक्ष के नीचे एक पैर पर दूसरा पैर रखकर लेटे हुए थे। श्री कृष्ण जी के एक पैर में पदम (जन्म से लाल निशान था) जो सूर्य की रोशनी में हिरण की आंख की तरह चमक रहा था।  तभी एक शिकारी शिकार की तलाश में घूम रहा था। उस शिकारी ने देखा कि वहां पेड़ के नीचे हिरण है उसने पेट की ओट लेकर जहर में बुझा हुआ तीर हिरण की आंख समझ कर छोड़ दिया। श्री कृष्ण जी जोर से चिल्लाए हाय! मर गया। 

शिकारी घबराया हुआ उनके पास दौड़कर गया और देख कर क्षमा याचना करने लगा। श्री कृष्ण जी ने उससे कहा कि आज तेरा बदला पूरा हुआ। शिकारी बोला कि महाराज यह कौन सा बदला है? आप तो मेरे सबसे प्रिय हैं। आपसे मेरी कोई दुश्मनी नहीं है। तब श्री कृष्ण जी ने त्रेता युग वाला सारा वृत्तांत सुनाया और उनसे कहा कि आप यहां से चले जाइए और अर्जुन तक मेरा संदेश पहुंचा देना कि वह मुझसे आकर यहां मिले। अर्जुन के वहां पहुंचने पर श्री कृष्ण जी ने कहा कि आप पांचों भाई हिमालय में जाकर तप करके अपना शरीर त्याग देना। श्री कृष्ण जी तड़पते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। अर्जुन वहां खड़ा खड़ा सोच रहा था कि कृष्ण जी तो बड़े बहरूपिया निकले। महाभारत की युद्ध के दौरान कह रहे थे कि अर्जुन तेरे दोनों हाथों में लड्डू है युद्ध में मारा गया तो सीधा स्वर्ग जाएगा और जीत गया तो पृथ्वी का राज भागेगा और आज कह रहे हैं कि हिमालय में जाकर तप करके अपना शरीर त्याग देना।

कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं,
इनका नाहीं संसार।
जिन साहब संसार किया,
सो किनहु न जन्मया नारि।।

उपयुक्त सत्य विवरण से आप स्वयं निर्णय कर सकते हैं कि तीन लोक के मालिक (पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग) विष्णु जी की जन्म-मृत्यु, श्राप, कर्म बंधन से स्वयं को नहीं बचा सकते तो अपने साधक की रक्षा कैसे करेंगे।

5. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म काल है न कि श्री कृष्ण 


दुनिया समझती है कि गीता पवित्र श्रीमदभगवत गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने दिया लेकिन गीता ज्ञान तो श्री कृष्ण के शरीर में काल (जो ब्रह्मा, विष्णु, शिव का पिता है) ने प्रवेश करके दिया था।

प्रमाण के लिए देखें पवित्र श्रीमदभगवत गीता अध्याय 1 श्लोक 31-39, 46 तथा अध्याय 2 श्लोक 5 से 8।
सच्चाई यह है कि काल भगवान जो इस 21 ब्रह्मांड का प्रभु है उसने अपना एक अनुत्तम (घटिया) नियम बना रखा है कि मैं स्थूल शरीर में व्यक्त (मानव सदृश्य वास्तविक) रूप में सबके सामने कभी नहीं आऊंगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बनाकर प्रेत की तरह श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके गीता जी का ज्ञान दिया।

6. पूर्ण वासुदेव कौन है


पूर्ण परमात्मा की भक्ति के लिए पवित्र गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता बोलने वाला ब्रह्म स्वयं कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा की भक्ति की प्राप्ति के लिए किसी तत्वदर्शी संत को ढूंढ फिर वह जैसे भक्ति बताएं वैसे कर। 

पवित्र गीता जी बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि वह पूर्ण परमात्मा का पूर्ण ज्ञान व पूर्ण भक्ति विधि नहीं जानता। फिर गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 व 66 में किसी अन्य परमेश्वर की शरण में जाने को कह रहा है।
अपनी साधना के बारे में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में कहा है कि मेरी भक्ति का तो केवल एक ओउम (ॐ) अक्षर है। जिसका उच्चारण करके अंतिम सांस तक जाप करने वाले मेरी परम गति को प्राप्त होता है।

फिर गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में कहा है कि जिन प्रभु चाहने वाली आत्माओं को तत्वदर्शी संत नहीं मिला जो पूर्णब्रह्म की साधना को जानता हो, इसलिए वे उद्धार आत्माएं मेरे वाली अपनी ( अनुतमाम)  अति अनुत्तम परमगति में ही आश्रित हैं। ( पवित्र गीता जी बोलने वाला प्रभु स्वयं कह रहा है कि मेरी साधना से होने वाली गति अर्थात मुक्ति भी अति अश्रेष्ठ है।)

परन्तु आज बोली जनता कृष्ण को अपना इष्ट समझ कर अपनी भक्ति कर  रहे है। यह न गीता कहने वाले से परिचित हैं और न गीता में लिखित ज्ञान को समझते हैं।

सिर्फ लोक वेद पर आधारित कृष्ण और राधा की जोड़ी बनाए बैठे हैं। जब राधा कृष्ण से मिलने जाती थी तब है राधा को अभद्र गालियां देकर उसका जीना दुर्बल किए हुए थे। आज कलयुग में राधा कृष्ण के नाम की माला जपते हैं। राधा कृष्ण नाम का मंत्र मुक्ति दायक नहीं है। ना ही गीता में लिखा है।
जब मीरा को पूर्ण परमात्मा की जानकारी हुई तो उन्होंने श्री कृष्ण जी से प्रश्न किया कि क्या कोई आप से भी बड़ी कोई शक्ति है जो पूर्ण मोक्ष दायक है?? कृष्ण जी ने स्वीकार किया कि हां मीरा। कोई और पूर्ण परमात्मा है परंतु मैं उनको नहीं जानता। जो तुझे बता  रहा है तो उसी की शरण में जा।

इष्ट सोई जो सबका होई, जहां न भेदभाव कछु कोई।अखंडस्वरूप अस्तिबखानों कहै कबीर निज आतम जानो।।


ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भक्ति भी मोक्ष दायक नहीं है। ब्रह्मा विष्णु महेश की जन्म मृत्यु में आते हैं। जिनका खुद का मोक्ष नही हुआ वह अपने साधक (भक्त) को कैसे मोक्ष दे सकते है।

 पवित्र गीता को बोलने वाला ब्रह्म गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में स्वयं कह रहा है कि ये सर्व ज्ञानी आत्माएं है जो उदार (नेक) है। परंतु पूर्ण परमात्मा की तीन मंत्र की (ओम, तत् , सत) की वास्तविक साधना बताने वाला तत्वदर्शी संत ना मिलने के कारण यह सब मेरी ही अनुतमाम यानी अति अश्रेष्ठ मुक्ति गति की आस में ही आश्रित रहे अर्थात मेरी साधना भी अश्रेष्ठ है। 

गीता बोलने वाला काल अर्जुन को पूर्ण परमात्मा की शरण में जाने का कह रहा है।

गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्व भाव से उस पूर्ण परमात्मा की शरण में जा जिसकी कृपा से तू परम शांति तथा सनातन परमधाम सतलोक को प्राप्त होगा। पवित्र गीता जी बोलने वाला काल कहता है कि वासुदेव ही सब कुछ है। (वासुदेव कृष्ण नहीं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब है) यही सब के सिरजनहार हैं। यही पापनाशक, पूर्ण मोक्षदायक है। यही पूजा के योग्य हैं। यही वासुदेव कुल के मालिक परम अक्षर ब्रह्म है। केवल इन्हीं की भक्ति करो अन्य की नहीं। जहां जाने के पश्चात साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आता। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है अर्थात जिस परमेश्वर ने सर्व की रचना की है उसी की पूजा करो।

वह परमेश्वर पूर्ण ब्रह्म कबीर साहिब हैं जो तत्वदर्शी संत की भूमिका में वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के रूप में धरती पर अवतरित हुए हैं।

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1 Comments

  1. Awesome ����������

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