कबीर परमात्मा (Kabir Saheb) की भक्ति किन-किन राजाओं ने करी और कबीर परमात्मा किन राजाओं को मिले थे? | Mysteries Blog

कबीर परमात्मा की भक्ति किन-किन राजाओं ने करी और कबीर परमात्मा किन राजाओं को मिले थे?






मानव शरीर धारी प्राणियों के मन में कभी ना कभी यह प्रश्न जरूर उठता है कि वह सबका मालिक एक है तो उस एक मालिक को किसने देखा है?
वह किसको मिला है?

लेकिन आज तक इन अनसुलझे
प्रश्नों को सुलझाने वाला कोई भी नहीं मिला।
तो आज हम आपके सामने इन ही उलझे हुए प्रश्नों को सुलझाने आए हैं। आज हम आपको प्रमाणित करके बताएंगे कि वह परमात्मा किस -किस को मिला है।
किन-किन पुण्यात्माओं ने उस पूर्ण परमात्मा की भक्ति करी है।
और आज वर्तमान में हम कैसे उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कर सकते है?



आज हम हर युग की बात करेंगे और जानेंगे कि किस युग में परमात्मा कौन से राजाओं को मिले।


  • 1. सतयुग
  • 2. त्रेतायुग
  • 3. द्वापरयुग
  • 4. कलयुग



मैं रोवत हूं सृष्टि को, सृष्टि रोवै मोहे।।
गरीबदास इस वियोग को, समझ ना सकता कोय।।


क्या अभी आपने ऐसा सोचा है कि क्या हम ही भगवान को खोज रहे हैं या फिर भगवान भी हमें खोज रहे है?
यह बात आश्चर्यजनक जरूर है लेकिन वह परमात्मा ऐसा भी करते हैं ताकि संसार में परमात्मा के प्रति आस्था जीवित रहे।
वह पूर्ण परमात्मा भी हमें खोज रहे है। 
और इसके लिये परमात्मा हर युग मे प्रकट होकर अपने वास्तविक ज्ञान को प्रकट करते है।
और इसका समर्थन हमारे पवित्र शास्त्र भी करते है कि वह परमात्मा हर युग में मनुष्य की तरफ प्रकट होकर ही अपने पुण्यात्माओं को वास्तविक ज्ञान से परिचित करवाते है।

सतयुग में सत सुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।
द्वापर में करुणामय कहावा, कलयुग नाम कबीर धराया।।


वह सबका मालिक पूर्ण परमात्मा "कबीर साहेब" ही है जो हर युग में प्रकट होकर अपनी पुण्य आत्माओं को वास्तविक ज्ञान से परिचित करवा कर सतभक्ति देकर मोक्ष प्रदान करते है।
आज हम इस वीडियो में चारों युगों की बात करेंगे और जानेंगे कि किस युग में परमात्मा किन राजाओं को मिले।




  • सतयुग


सबसे पहले बात करते है सतयुग की...
सतयुग में परमात्मा सत सुकृत नाम से आये थे। और उस समय के जो तत्कालीन राजा मित्र सैन, रानी चित्ररेखा व राजा राय हरचन्द को परमात्मा ने अपना वास्तविक ज्ञान समझा कर सतभक्ति की राह दिखाई। तथा मोक्ष प्रदान किया।
सतयुग में कबीर परमात्मा राजा अंबरीष को भी मिले थे और उन्हें सद्भक्ति मंत्र प्रदान किए थे।





  • त्रेतायुग


सतयुग के बाद अब बात करते है त्रेतायुग की..
त्रेतायुग में कबीर परमात्मा ऋषि मुनिन्द्र के नाम से प्रकट हुये थे। 
त्रेता युग में कबीर परमात्मा लंका में रहने वाले चंद्रविजय और उनकी पत्नी कर्मवती को भी मिले थे। 
और उस समय के राजा रावण की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण को भी ज्ञान समझा कर अपनी शरण में लिया। यही कारण था कि रावण के राज्य में भी रहते हुए उन्होंने धर्म का पालन किया।
त्रेतायुग में राजा जनक सीता जी के पिता को भी कबीर परमात्मा मिले थे और राजा जनक में भी कबीर परमात्मा द्वारा बताई गई भक्ति साधना की थी।


  • द्वापरयुग


त्रेतायुग के बाद द्वापरयुग की बात करते है।
द्वापरयुग में परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से प्रकट हुए थे। 
उस समय के तत्कालीन राजा चंद्रविजय था और उसकी पत्नी का नाम रानी इन्द्रमती था। 
रानी इन्द्रमती बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की औरत थी। कबीर परमेश्वर ने रानी इन्द्रमती व राजा।चंद्रविजय को अपने सच्चे ज्ञान से परिचित करवाया जिससे दोनों बहुत प्रभावित हुए और कबीर परमात्मा का सतभक्ति मार्ग अपनाया।
और अंत में मोक्ष प्राप्त किया 


द्वापर युग में और भी अन्य राजा हुए जिनमें राजा भोज, राजा मुचकुन्दहि, राजा चन्र्दहास, राजा विदुर और धुंधुल नामक राजा। इन राजाओं ने भी उस समय कबीर परमात्मा के ज्ञान से प्रभावित होकर सतभक्ति मार्ग अपनाया था। जिससे इनका भी मोक्ष हुआ।


  • कलयुग


अब बात करते है कलयुग की।
आज से ठीक 600 साल पहले कबीर परमात्मा विक्रमी संवत् 1455 (1398 ई.) ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी के दिन काशी शहर में लहरतारा तालाब में अवतरित हुये। और काशी के नीरू नीमा नामक निसन्तान दम्पत्ति को मिले।

उस समय कबीर परमात्मा 120 वर्ष पृथ्वी लोक पर रहकर गए और इस दौरान उन्होंने बहुत सारी अनहोनी लीलाएं की और उनके आध्यात्मिक ज्ञान को समझ कर उस समय कबीर परमात्मा के 64 लाख शिष्य हुए।

एक ऐसे समय में जब प्रचार का माध्यम सोशल मीडिया नहीं था उस समय कबीर परमात्मा के 64 लाख शिष्य होना इस बात का प्रमाण है कि उस परमात्मा की समर्थता कितनी है।
जब कबीर परमात्मा के 64 लाख शिष्य हुए थे तो उस समय के कुछ तत्कालीन राजाओं ने भी कबीर परमात्मा की शरण ग्रहण की थी।
जब कबीर परमात्मा काशी में प्रकट हुए थे उस समय काशी नगर का तत्कालीन राजा बीर सिंह बघेल था।

कबीर परमात्मा ने बीर सिंह बघेल को समझाया कि आप जिन ब्रह्मा विष्णु तथा शिव को अविनाशी मानते हो यह तो नाशवान है। इनकी भक्ति करने से मुक्ति नहीं हो सकती। पवित्र शास्त्रों में कही भी इनकी भक्ति का वर्णन नहीं है। यह शास्त्रों की विरूद्ध भक्ति है।  राजा बीर सिंह बघेल तथा रानी मानकदेई कबीर परमात्मा के ज्ञान से काफी प्रभावित हुये और और परमेश्वर कबीर जी से उपदेश लेकर सद्भक्ति की।
दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है उन्होंने भी कबीर परमात्मा के आध्यात्मिक मार्ग को स्वीकार कर सद्भक्ति की थी।
दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी को जलन का रोग था और जलन का रोग ऐसा होता है जैसे किसी का आग में हाथ जल जाए उसे पीड़ा बहुत होती है जलन के रोग में कहीं से शरीर जला दिखाई नहीं देता परंतु पीड़ा अत्यधिक होती है उसको जलन का रोग कहते हैं। 
जब प्राणी के पाप बढ़ जाते हैं तो दवाई भी व्यर्थ हो जाती है। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के साथ भी वही हुआ। सभी प्रकार की औषधि सेवन करें बड़े-बड़े वैद्य बुला लिए लेकिन राहत कहीं से नहीं मिली। 
जब सिकंदर लोधी को पता चला कि  काशी शहर में एक कबीर नाम के महापुरुष रहते हैं अगर उनकी दया हो जाए तो दुख निवारण अवश्य हो सकता है।
और जब सिकंदर लोधी कबीर परमात्मा से मिले थे तब कबीर परमात्मा ने अपना आशीर्वाद भरा हाथ  सिकंदर लोधी के सिर पर रखा था और उसी समय सिकंदर लोधी के जलन का रोग समाप्त हो गया था।
तब सिकंदर लोधी को समझ आ गया था कि यह कोई आम इंसान नहीं बल्कि स्वंय अल्लाह-हु-अकबर
है। और फिर कबीर परमात्मा द्वारा बताए गए भक्ति मार्ग को अपनाया।

अब बात करते है बिजली खान पठान की जो उस समय मगहर रियासत नवाब था।  एक बार मगहर रियासत में दुर्भिक्ष पड़ा। त्राहि-त्राहि मच गई। 
उस समय कबीर परमात्मा ने मगहर रियासत की रक्षा करी थी।
कबीर परमात्मा के चमत्कार को देखकर बिजली खान पठान ने कबीर परमात्मा का ज्ञान स्वीकारा और उनके द्वारा बताई गई सतभक्ति करी।


इराक के अंदर एक बलख नाम का शहर था और वहाँ के राजा का नाम अब्राहिम अधम सुल्तान था। 
अब्राहिम अधम सुल्तान पिछले जीवन में जो श्रद्धा से भक्ति करी थी उसके कारण मनुष्य जीवन मिलता आ रहा था और जो दान किया था उसके प्रतिफल में राजा बनता रहा। भगवान में श्रद्धा पहले से ही थी जिस कारण से कबीर परमात्मा द्वारा बताए गए आध्यात्मिक मार्ग को समझते देर नहीं लगी और परमेश्वर कबीर द्वारा बताई गई सद्भक्ति करके मोक्ष प्राप्त किया।


परमेश्वर कबीर जी उड़ीसा प्रांत के  इंद्रदमन नाम के राजा को भी मिले थे। 
उड़ीसा के जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण कबीर परमात्मा ने ही किया था जिसका प्रमाण आज भी वहां पर है।
 जिस पत्थर (चौरा) पर बैठकर कबीर परमेश्वर ने मंदिर को बचाने के लिए समुद्र को रोका था वह आज भी वहां विद्यमान है।
परमेश्वर कबीर जी का यह चमत्कार देखकर इंद्रदमन ने भी परमात्मा कबीर के ज्ञान को स्वीकारा था।
और हिंदुस्तान का यह एक ही ऐसा मंदिर है जिसमें प्रारंभ से ही छुआछूत नहीं होती।



जालन्धर नगर के राजा भोपाल को भी कबीर परमात्मा मिले थे। 

परमेश्वर कबीर जी ने संत गरीबदास
जी (छुड़ानी वाले) को बताया था जो संत गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में लिखा।
गोता मारूँ स्वर्ग में, जा पैठूं पाताल। गरीबदास ढूँढ़त फिरूँ, हीरे माणिक लाल।।

भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि मैं अपनी अच्छी आत्माओं को ढूँढ़ता फिरता हूँ। स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी पर जहाँ भी कोई मेरा पूर्व जन्म का भक्त जो पार न हो सका, उस
नेक जीव को फिर से भक्ति की महिमा तथा आवश्यकता बताने के लिए उनसे मिलता हूँ। उनको जैसे-तैसे भक्ति का महत्त्व बताकर काल-जाल से छुड़वाता हूँ। ये मेरे हीरे-मोती तथा लाल हैं। इनकी खोज करता हूँ। इसी विधान अनुसार परमेश्वर कबीर जी राजा भोपाल को मिले। 
 राजा भोपाल को अपने वास्तविक ज्ञान से परिचित करवाया। और सतलोक लेकर गए।
जिससे राजा बहुत प्रभावित हुआ।
और राजा ने अपनी 9 रानियों तथा  50 पुत्रों तथा एक पुत्री को परमात्मा के सतलोक का आँखों देखा विवरण सुनाया। परिवार के सर्व सदस्यों ने परमेश्वर कबीर जी से नाम लिया और अपना मोक्ष करवाया।

राजस्थान के गिगनौर (वर्तमान नाम नागौर) नामक शहर के राजपूत राजा पीपा ठाकुर ने भी परमात्मा कबीर जी के आध्यात्मिक ज्ञान से प्रभावित होकर भक्ति मार्ग को अपनाया था।

कलयुग में कबीर परमात्मा वाजिद नाम के मुसलमान राजा को भी मिले थे और अपने तत्वज्ञान से परिचित करवा कर सद्भक्ति की राह दिखाई थी।

और भी अन्य राजा हुए जो कबीर परमात्मा के तत्वज्ञान से प्रभावित हुए और परमात्मा कबीर जी द्वारा बताई गई भक्ति राह अपनाई जिनमें 
नोसेर खान पठान, राजा अमर सिंह, राजा जगजीवन, राजा बीर सिंह व
राजा कनक सिंह। 



आज आपको पता लग ही गया होगा की पूर्ण परमात्मा कैसे हर युग में अपनी पुण्य आत्माओं को मिलते हैं और आज आपको यह भी पता लग गया कि राजा होते हुए भी मान बड़ाई व अभिमान को त्याग कर उस पूर्ण परमात्मा की सच्ची श्रद्धा से भक्ति करके अपना मोक्ष करवाया।



पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी हमारे पिता हैं जो हर युग में प्रकट होकर हमें भक्ति की राह दिखाते हैं ताकि हम वापस उस सुखदाई लोक सतलोक में जा सके जहां से हम गलती करके काल के साथ इस पृथ्वी लोक में आ गए हैं।
आज आपने देखा कि राजा पद पर होते हुए भी मान-बड़ाई, अभिमान को त्यागकर उन्होंने उस पूर्ण परमात्मा की वास्तविक ज्ञान को समझ कर सच्ची श्रद्धा से भक्ति की और मोक्ष के अधिकारी हुए।
अतः हमारा आपसे निवेदन है कि वर्तमान में परमेश्वर कबीर जी के अवतार स्वरूप संत रामपाल जी महाराज आए हुए हैं और वही ज्ञान जो  परमेश्वर कबीर जी ने स्वयं प्रकट होकर  दिया था आज वही ज्ञान संत रामपाल जी महाराज बता रहे हैं।
परमात्मा चाहने वाली आत्माएं इस ज्ञान को स्वीकार करें।
वर्तमान में तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज इस अनमोल ज्ञान को जनसाधारण बता रहे हैं।
लेकिन नकली धर्मगुरुओं ने जिनका आधार ही धार्मिक पाखंडवाद है उन्होंने कबीर परमात्मा का वास्तविक ज्ञान आम जनता तक पहुंचने ही नहीं दिया।


लेकिन आज पूर्ण परमात्मा कबीर जी की सही जानकारी संत रामपाल जी महाराज जी के पास है।
अतः समय रहते आप भी संत रामपाल जी महाराज जी को पहचानो और उनके द्वारा बताई गई भक्ति साधना करके अपना मोक्ष करवाओ।

कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि :-
कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारं-बार।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लागे डार।।


आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। 

संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।

Post a Comment

3 Comments

you come and support me, we will make this earth heaven