रक्षाबंधन 2020 | कौन है असली रक्षक | raksha bandhan festival 2020 | Mysteries Article

रक्षाबंधन 2020 | कौन है असली रक्षक | raksha bandhan festival 2020 | Mysteries Article 


इस रक्षाबंधन पर जानिए कौन है असली रक्षक?      रक्षाबंधन का असली उद्देश्य क्या है..? कब है रक्षाबंधन, रक्षाबंधन का इतिहास। कैसे रक्षाबंधन की शुरुआत हुई और कौन है पूर्ण परमात्मा जो हमारा असली रक्षक है।





इस साल 2020 में रक्षाबंधन 3 अगस्त 2020 को यानि सावन के समापन के साथ पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। इसी दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधेंगी। 

आइये जानते है रक्षाबंधन का इतिहास




1. रक्षाबंधन का इतिहास 


रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। हिंदू पुराण कथाओं के अनुसार, महाभारत के, (जो कि एक महान भारतीय महाकाव्‍य है) अनुसार जब श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र शिशुपाल का वध करके वापस श्री कृष्ण जी के पास पहुंचा तो सुदर्शन चक्र से श्री कृष्ण जी की अंगुली कट गई और रक्त बहने लगा, तुरंत द्रोपती ने अपने साड़ी का किनारा फाड़कर श्री कृष्ण जी की अंगुली पर बांध दिया। बदले में श्रीकृष्ण ने द्रोपति की रक्षा का वादा किया।
यह दिन श्रावण मास पूर्णिमा का दिन था। 
मान्यता है कि तभी से भाई बहन का यह त्यौहार रक्षाबंधन शुरू हुआ।

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती महाभारत में उल्लेख है कि युधिष्ठिर ने महाभारत के दौरान श्री कृष्ण जी से संकटों को पार करने का उपाय पूछा तो कृष्ण जी ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए रक्षा बंधन का त्यौहार मनाने की सलाह दी। कृष्ण का मानना था कि रेशमी धागा बांधने से रक्षा हो सकती है। लेकिन क्या कृष्ण जी के इस उपाय के बाद सभी सैनिक अपने घर वापस सुरक्षित लौट सके?
“वामन पुराण” के अनुसार राजा बलि ने विष्णु जी को तीन पग धरती देने के बाद विष्णु जी से वरदान मांगा की आप पाताल में मेरे साथ रहो, इसी तरह राजा बलि ने भक्ति के बल पर विष्णु जी को अपना द्वारपाल बनाकर रख लिया लेकिन देवी लक्ष्मी ने विष्णु जी को मुक्त कराने अर्थात बैकुंठ धाम वापस ले जाने के लिए राजा बलि को अपना भाई बनाया और विष्णु जी को बैकुंठ धाम लेकर गई और वहीं से रक्षा बंधन का यह त्यौहार शरू हुआ। उपरोक्त कथाएं घटनाओं की तरह प्रतीत होती हैं। जैसे कोई दन्त कथा हो, जिस वजह से इस रक्षा बंधन परंपरा का कोई ठोस प्रमाण नजर नहीं आता ताकि इस पर्व की विशेषता और आवश्यकता सिद्ध हो। इन बेबुनियाद परम्पराओं के चक्कर में मनुष्य अपने जीवन का मूल उद्देश्य ही भूलता चला जा रहा है।


2. क्या रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन तक ही सीमित है???


अगर यह रक्षाबंधन पर्व सिर्फ भाई-बहन का ही पर्व है तो फिर जिन बहनों के भाई नहीं है, वह क्या करें???
रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की रक्षा सूत्र बांधती है लेकिन जिन बहनों के भाई नहीं होते उनकी आत्मा दुखती है और अन्य बहनों को अपने भाई की कलाई में राखी बांधते हुए देख कर मन में बहुत कुंठित होती हैं।
लेकिन बात भाई बहन की राखी बांधने तक की नही, बात यहां आकर बिगड़ गई क्योंकि जब अब घर की बेटियों द्वारा ब्राह्मणों, गुरुओं,  जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी राखी बांधी जाने लगी है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से भी किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बांधी जाती है यहां तक कि आजकल प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को भी राखी बांधी जाने की परंपरा शुरू हो गई है।
 सिर्फ यही नहीं आज आधुनिक यंत्र जैसे वहां कूलर,फ्रिज, टीवी, वाहन आदी पर भी यह रक्षा सूत्र बांधा जाने लगा है।
त्योहार के नाम पर उलझी हुई इस गुत्थी से यह तो साबित होता है कि रक्षाबंधन के नाम पर रिश्तों का रायता बुरी तरह फैला हुआ है। क्योंकि यह त्योहार अब भाई बहन के रिश्ते पर ही निर्भर नहीं रहता बल्कि रक्षा और स्नहे के नाम पर भी मन को समझाने वाला आडंबर मात्र है।




समाज में कैसी-कैसी मान्यताएं प्रचलित हैं कि बहन अपने भाई को रक्षा सूत्र इसलिए बांधती है ताकि भाई-बहन की रक्षा कर सके और बहन भी उम्मीद करती है कि मेरे द्वारा बांधे गए इस रक्षा सूत्र से मेरे भाई की रक्षा होगी। लेकिन क्या सच में भाई अपनी बहन की रक्षा करने में सक्षम है या बहन के पास वह सामर्थ्य है कि अपने भाई पर आने वाले संकटो को टाल सके? एक बहन ने बखूबी ध्यान रखा कि क्या है राखी बांधने का शुभ मुहूर्त और उसी राखी के दिन अपने भाई का शहर से घर लौटने का इंतजार कर रही थी। सोचा भाई आज शहर से घर लौट रहा है। उसे राखी बांधूंगी, लेकिन बीच रास्ते में ही भाई की एक दुर्घटना में मौत हो गई और भाई की जगह उसकी लाश आई। जिस रक्षा करने वाले भाई का इंतजार बहन बड़ी बेसबरी से कर रही थी वो खुद अपनी रक्षा नहीं कर पाया और ना ही बहन का रक्षा सूत्र अपने भाई की इस अकाल मृत्यु को टाल पाया तो फिर रक्षा सूत्र का यह कैसा अंधविश्वास है जिसे एक परम्परा के तहत घसीटा जा रहा है।

भाई के बस की बात नहीं की वह खुद की या अपनी बहन की रक्षा कर सके।

पूर्ण परमात्मा ही सबका रक्षक है। उसके अलावा अगर मनुष्य चाहे तो अपनी इच्छा से एक भी श्वास ज्यादा नहीं ले सकता है, लेकिन पूर्ण परमात्मा समरथ है जो अकाल मृत्यु को भी टाल सकता है। हमारे पवित्र शास्त्र भी इस बात की गवाही देते हैं कि वह समरथ परमात्मा अपने भगत की अकाल मृत्यु तक टाल देता है उसे 100 वर्ष की आयु प्रदान करता है।

रक्षा करने का असली सामर्थ्य सिर्फ पूर्ण परमात्मा ही रखता है जिसे किसी भी रक्षा सूत्र की जरूरत नहीं होती। इंसान के शरीर में 36 जोड़ लगे हैं, ना जाने शरीर का कौन सा पुर्जा कब बंद हो जाये, फिर भी इंसान सोचता है कि मैं कभी नहीं मरूँगा, जो बहन भाई से रक्षा की उम्मीद करती है उसे समझना होगा कि क्या भाई के लिए उसका प्यार सिर्फ एक रक्षा बंधन के दिन ही है, क्या उसके अलावा पूरे साल में जितने भी दिन बीते उनमें उसका अपने भाई के प्रति प्यार नहीं था, या भाई का अपनी बहन के प्रति? 
जरूरी तो नहीं की बहन अपने भाई को राखी बांधकर या भाई अपनी बहन को वीरपस (भाई द्वारा बहन को रक्षा बंधन का निमंत्रण) देकर ही यह साबित करे की मैं तेरा हितैषी, प्रिय, भला चाहने वाला हूँ।


यह सिर्फ दंत कथाएं और अंधविश्वास है क्योंकि असल में रक्षा सिर्फ पूर्ण परमात्मा ही कर सकता है।



वर्तमान में केवल एक सच्चे संत संत रामपाल जी महाराज ने ही हमेशा ही रूढ़िवादिता और आडंबर युक्त अंधश्रद्धा का विरोध किया है।
संत रामपाल जी महाराज जी के अनुसार राखी का त्यौहार एक अंधश्रद्धा है जिसमें रक्षा के नाम पर सिर्फ इस पर्व को मनमाना आचरण करके चलाया जा रहा है क्योंकि हमारे पवित्र सद ग्रंथ इस बात की गवाही देते हैं कि अगर मानव जीव की रक्षा करने में कोई शक्ति सक्षम है तो वह सिर्फ पूर्ण परमात्मा है, और पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब है।

इस ब्रह्मांड में कोई भी जीव हो चाहे वो मनुष्य, पशु हो ,देवता हो वह अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता। अगर हम इतिहास के पन्नों में जाकर देखें तो पता चलता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर पाए थे ऐसे में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब चारों युगों में अलग अलग नाम से प्रकट होकर उनकी सहायता करते हैं। 
संत रामपाल जी महाराज जी का कहना है कि अगर आप वास्तव में बहन या भाई की रक्षा करना चाहते हैं तो रक्षाबंधन जैसे अंधविश्वास को त्यागो और पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की शरण ग्रहण करो।
हमारा असली रक्षक कबीर भगवान है। और मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य पवित्र शास्त्र के अनुसार सद्भक्ति करके 84 लाख योनियों के जन्म मरण से छुटकारा पाकर अपने निजधाम सतलोक प्राप्त करना है।


सतलोक एक ऐसा स्थान जहां मौत होती है ना बुढ़ापा होता है वहां आत्माएं अमर है।
ना कोई कष्ट है ना ही कोई किसी की रक्षा की भीख मांगी पड़ती है क्योंकि सतलोक में ना कोई द्वेष है ना कोई कहर वहाँ सिर्फ कबीर परमात्मा की सुखदाई महेर ही महेर है।


मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना है।


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3 Comments

  1. असली रक्षक तो वास्तव में पूर्ण परमात्मा ही है उनके सिवा ऐसा कोई भी नहीं है जो किसी भी परिस्थिति में मनुष्य की रक्षा कर सकें

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  2. आपकी यह जानकारी अत्यधिक प्रमाणिक है, और समाज की बुराइयों को दूर करने का एक कारगर उपाय भी।

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